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Tuesday, December 28, 2010

दया धर्म का मूल हे

दया धर्म का मूल हे ,पाप मूल अभिमान ,
तुलसी दया न छोडिए , जब लग घट   में प्राण !


जब में था हरी नहीं ,हरी हें में नहीं ,
प्रेम गली अति सांकरी, जा में दो न समाए!

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