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Saturday, September 22, 2012
Saturday, September 8, 2012
दोस्ती के नाम.......
गुरु की याद को मैंने, दिल में बसा रक्खा हें .दिल को गुले गुलज़ार चमन बना रक्खा हें.
पीर की याद को मैंने दिल में सजा रक्खा हें. दिल में रहता हें ,रात दिन तस्स्बुर उनका ,
गुरु को मैंने अपनी आखो में बसा रक्खा हें. पीर की याद को मैंने दिल में सजा रक्खा हें
मुझको न देखो ,मेरे गुरु की रहमत देखो . उनको फरिश्तो ने भी दिल में सजा रक्खा हें
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