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Friday, August 30, 2013

Fwd: [Vishwa Jagriti Mission ( World Awakening Mission)] यो सौदा फिर नाहीं संतों, यो सौदा फिर नाहीं ||टेक||





Lokesh Kumar
यो सौदा फिर नाहीं संतों, यो सौदा फिर नाहीं ||टेक||
लोहे के सा ताव जात है, काया देह सिराहीं |
यो दम टूटै पिण्डा फूटै, हो लेखा दरगह माहीं |
तीन लोक और भवन चतुर्दश, यो जग सौदे आई |
दूने तीने किये चौगने, किनहूं मूल गंवाई |
उस दरगह में मार पड़ेगी, जम पकरैंगें बाहीं |
वा दिन की मोहि डरनी लागै, लज्या रहै के नाहीं |
नर नारायण देह पाय कर, फिर चौरासी जाहीं |
जा सतगुरु की मैं बलिहारी, जामन मरण मिटाहीं |
कुल परिवार सकल कबीला, मसलति एक ठहराई |
बांधि पिंजरी आगै धरिया, मडहट में ले जाहीं |
अग्नि लगा दिया जदि लंबा, फूकि दिया उस ठाहीं |
वेद बांधि कर पंडित आये, पीछै गरुड़ पढ़ाहीं |
नर सेती फिर पशुवा कीजै, गधा बैल बनाई |
छप्पन भोग कहाँ मन बौरे, कुरडी चरने जाई |
प्रेतशिला पर जाय बिराजे, पितरों पिंड भराहीं |
बहुरि शराध खान कूं आये, काग भये कलि माहीं |
जो सतगुरु की संगत करते, सकल कर्म कट जाहीं |
अमरपुरी में आसन होते, ना जहाँ धूप न छाहीं |
सुरति निरति मन् पवन पियाना, शब्दें शब्द समाई |
गरीबदास गलतान महल में, मिले कबीर गोसांई

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