हमने मन को अस्थिर - अस्थायी चीजों में लगा रखा है, हम जीवन की प्राथमिकताओ को पहचानने का प्रयास नहीं करते, परमात्मा हमारे लिए केवल द्वितीय वस्तु है, स्वयं को हम जानते नहीं, अन्दर हम झांकते नहीं, बस यही तो खोट है मन में, स्वयं को जानना है। ध्यान, सत्य को पहचानना ही ध्यान है, उस परम प्रभु से मिलना, उसके लिए बेचैनी, तड़प, उससे मिलने की तीव्र उत्कंठा ही योग है।
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