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Sunday, November 15, 2009

दोहे -३

  • १९ *राम राम रटते रहो ,जब तक घट में प्राण !
    कभी तो दीन दयालू के भनक पडेगी कान !!
    २० *रात यूँ कहने लगा मुझ से गगन का चांद ,
    आदमी भी क्या अनोखा जीव हे !!
    २१ *जब में था हरी नहीं ,हरी हे में नहीं ,
    प्रेम गलि अति सांकरि या में दो न समाएं!
    २२ *चाह गयी चिंता मिटि ,मनवा बे परवाह ,
    जिसको कुछ नहीं चाहिए वही शाहों का शाह !
    २३ *देह धरि का दड हे ,सब काहु को होय ,
    ग्यानी भुगते हंस हंस कर ,मूरख भुगते रोये !
    २४ *सिर मुंडाये तीन गुण ,सिर की मिट जाये खाज ,
    खाने को हल्वा मिले ,लोग कहें महाराज !
    २५ *मन के हारे हार हे , मन के जीते जीत !
    २६ *कहता हुं कहे जात हूँ, बजा बजा ढोल,
    यह श्वासा खाली जात हे तीन लोक का मोल !
    २७ *तुलसी तुलसी सब कहें , तुलसी बन की घास ,
    जब से भई कृपा राम कि ,तो बन गये तुलसी दास !
    २८ *दुनिया में हूँ ,पर दुनिया का तलब्गार नहीं हूं,
    बाजार से गुजरा हूं , पर खरीदार नही हूं !
    २९ *रहिमन धागा प्रेम का मत तोडो चटकाए !
    टूटे से फिर न जुडे ,जुडे गांठ पड जाए!!

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