- १९ *राम राम रटते रहो ,जब तक घट में प्राण !
कभी तो दीन दयालू के भनक पडेगी कान !!
२० *रात यूँ कहने लगा मुझ से गगन का चांद ,
आदमी भी क्या अनोखा जीव हे !!
२१ *जब में था हरी नहीं ,हरी हे में नहीं ,
प्रेम गलि अति सांकरि या में दो न समाएं!
२२ *चाह गयी चिंता मिटि ,मनवा बे परवाह ,
जिसको कुछ नहीं चाहिए वही शाहों का शाह !
२३ *देह धरि का दड हे ,सब काहु को होय ,
ग्यानी भुगते हंस हंस कर ,मूरख भुगते रोये !
२४ *सिर मुंडाये तीन गुण ,सिर की मिट जाये खाज ,
खाने को हल्वा मिले ,लोग कहें महाराज !
२५ *मन के हारे हार हे , मन के जीते जीत !
२६ *कहता हुं कहे जात हूँ, बजा बजा ढोल,
यह श्वासा खाली जात हे तीन लोक का मोल !
२७ *तुलसी तुलसी सब कहें , तुलसी बन की घास ,
जब से भई कृपा राम कि ,तो बन गये तुलसी दास !
२८ *दुनिया में हूँ ,पर दुनिया का तलब्गार नहीं हूं,
बाजार से गुजरा हूं , पर खरीदार नही हूं !
२९ *रहिमन धागा प्रेम का मत तोडो चटकाए !
टूटे से फिर न जुडे ,जुडे गांठ पड जाए!!
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Sunday, November 15, 2009
दोहे -३
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